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ISSN 0972-5636 okZ 38 vad 4 vizSy 2018 · 2019-01-29 · 4 भारतीय आधुवनक...

Date post: 08-Mar-2020
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ISSN 0972-5636 vizSy 2018 vad 4 o"kZ 38
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  • ISSN 0972-5636

    vizSy 2018vad 4o"kZ 38

  • सलाहकार समिमत िनदशेक,रा.श.ैअ.प्र.प.: �षिकेशसेनापषि अध्यक्ष,अ.षश.षि.: राजरानी अध्यक्ष,प्रकाशनप्रभाग: एम.षसराजअनिर

    सपंादकीय समिमत अकादििकसंपादक : षजिेन्द्रकुमारपाटीदार िखु्यसंपादक : शिेिाउप्पल

    अन्य सदस्य राजरानी, रंजनाअरोडा उिाशमामा, मध्ाुषलकाएस.पटेल बी.पी.भारद्ाज

    प्रकाशन िंडल िखु्यवयापारप्रबंधक : गौिमगांगलुी

    िखु्यउतपादनअिधकारी : अ�णषचिकारा उतपादनसहायक : मकेुशगौड

    आवरणअषमिश्ीिासिि

    हिारे कायायालय

    प्रकाशनप्रभाग

    एन.सी.ई.आर.टी.कैं पस

    श्ीअरषिंदमागमानयी मदलली 110 016 फोन:011-26562708

    108,100फ़ीटरोडहोसकेरेहललीएक्सटेंशनबनाशकंरी।।।सटेजबेंगलुरु 560 085 फोन:080-26725740

    निजीिनट्रसटभिनडाकघरनिजीिनअहिदाबाद 380 014 फोन:079-27541446

    सी.डब्ल्यू.सी.कैं पसधनकलबससटटॉपकेसामनेपषनहटीकोलकाता 700 114 फोन:033-25530454

    सी.डब्ल्यू.सी.कटॉम्प्लैक्समालीगाँिगुवाहाटी 781 021 फोन:0361-2674869

    िूलय एकप्रषि:`50 िाषिमाक:`200

    पमरिका के बारे िेंभारतीयआधिुनकिशक्षा राष्ट्री्शषैक्षकअनसुंधानऔरप्रषशक्षणपररिद्क़ीएकत्ैमाषसकपषत्काह।ैइसपषत्काका मखु्् उद्शे् है षशक्षाषिदों, शषैक्षक प्रशासकों, षशक्षक-प्रषशक्षकों, षशक्षकों, शोधकों एिं षिद्ार्थी-षशक्षकों कोएकमचंप्रदानकरना। षशक्षाएिं षशक्षक षशक्षा के षिषभन्नअा्ामों,जैसे—बाल्ािसर्ामें षिकास,समकालीनभारिएिं षशक्षा, षशक्षामेंदाशमाषनकएिंसामाषजकपररपे्रक्ष्,ज्ानकेआधारएिंपाठ््च्ामा,अषधगमकाआकलन,अषधगमएिंषशक्षण,समाजएिंषिद्ाल्केसदंभमामेंजेंडर,समािेशीषशक्षा,षशक्षाएिंषशक्षकषशक्षाहिेुआई.सी.टी.मेंनिीनषिकास,राष्ट्री्एिंअिंरामाष्ट्री्सिरपरषशक्षाएिंषशक्षकषशक्षाकासिरूप,षिषभन्नराज््ोंमें षशक्षाएिंषशक्षकषशक्षाक़ीषसर्षिपरमौषलकएिंआलोचनात्मकषचिंनकोप्रोत्साषहिकरनािर्ाषशक्षाएिंषशक्षकषशक्षाक़ीगणुित्ामेंसधुारएिंषिकासकोबढािादनेा।लेखकोंद्ाराभजेेगएसभीलेख,शोध-पत्आषदकाप्रकाशनकरनेसेपयूिमासंबंषधिलेख,शोध-पत्आषदकासमकक्षषिद्ानोंद्ारापयूणमाषनष्पक्षिापयूिमाकपनुरीक्षणषक्ाजािाह।ैलेखकोंद्ाराव््क्िषकएगएषिचारउनकेअपनेहैं।अि:्ेषकसीभीप्रकारसेपररिद्क़ीनीषि्ोंकोप्रसििुनहींकरिे,इसषलएइससंबंध्ामेंपररिद्काकोईउत्रदाष्त्िनहींह।ै

    © 2018. पमरिका िें प्रकामशत लेखों का रा.शै.अ.प्र.प. द्ारा सवायामिकार सरुमषित है, पररषद् की पूवया अनुिमत के मबना, लेखों का पुनिुयाद्रण मकसी भी रूप िें िान्य नहीं होगा।

  • ISSN 0972-5636

    भारतीय आधुनिक निक्ा

    वर्ष 38 अंक 4 अप्रैल 2018

    इस अंक में

    संपादकीय 3

    रचनात्मक पाठ्यचयाया स्मझ के साथ विकास

    भपूेन्द्र वसंहपतंजवि व्मश्र

    5

    वनव्मयातिाद और सीखना अखतर बानो 18

    एक अनठूा विज्ान खडं विज्ान विक्षण को रचनात्मक बनाने का एक प्रयास

    जागवृत रवसकिाि िकीि 25

    खिे-खिे ्में गवणत विक्षण प्रतीक चौरवसयासो्म ूवसंह

    30

    चडंीगढ़ के िहरी गरीब बचचों द्ारा विद्ािय छोड़ने के कारणों का अधययन

    ग�ु वरििा वसंहसतविंदरपाि कौर

    47

    विद्ाियी विक्षा द्ारा जीिन कौििों का विकास उ्मने्द्र वसंह 60

    बहुभाविकता गाँधीजी की भािा नीवत और भािा वच ंतन

    वचरिा वसंह 65

    अधयापक विक्षा एिं अधयापकों का वनरंतर पेििेर विकास उ्मेि च्मोिा 81

    विक्षकों ्में पेििेर चतेना एक ्महती ज़रूरत

    वजतेन्द्र कु्मार िोढ़ा 93

    विद्ािय वनरीक्षण, अनशु्रिण एिं अनसु्मथयान केििानंद काणडपाि 104

  • फाम्ष 4(वनय्म 8 दवेख ए)

    भारतीय अाधवुनक वि क्षा1. प्रकािन सथान नयी वदलिी2. प्रकािन अिवध रिरै्मावस क3. ्मदु्रक का ना्म ्मनोज ि्माया चार वदिाए ँवपं्रटसया, प्रा. वि. (कया भारत का नागरर क हरै?) हाँ (यवद विदिेी हरै तो ्मिू दिे का पता) िाग ूनहीं होता पता जी 40 - 41, सरैकटर - 3, नाेएडा 201 3014. प्रकािक का ना्म ए्म. वसराज अनिर (कया भारत का नागरर क हरै?) हाँ (यवद विदिेी हरै तो ्मिू दिे का पता) िाग ूनहीं होता पता राष्टीय िरैवक्षक अनसुंधान और प्रवि क्षण पररिद,् श्री अरवि ंद ्मागया नयी वद लिी 110 0165. अकादव्मक ्मखुय संपादक का ना्म वजतेन्द्र कु्मार पाटीदार (कया भारत का नागरर क हरै?) हाँ (यवद विदिेी हरै तो ्मिू दिे का पता) िाग ूनहीं होता पता राष्टीय िरैवक्षक अनसुंधान और प्रवि क्षण पररिद,् श्री अरवि ंद ्मागया नयी वद लिी 110 016 अधयक्ष, प्रकािन प्रभाग 6. उन व्यवकत यों के ना्म ि पते जो राष्टीय िरैवक्षक अनसुंधान और स्माचार-परि के सिा्मी हों तथा प्रवि क्षण पररिद,् श्री अरवि ंद ्मागया स्मसत पूंजी के एक प्रवत ित से नयी वद लिी 110 016 अवध क के साझदेार या वहससेदार हों (्मानि संसाधन विकास ्मरंिािय की सिायत्त संसथा)

    ्मैं, ए्म. वसराज अनिर, अधयक्ष, प्रकािन विभाग एतद ्द्ारा घोवित करता हू ँवक ्मरेी अवधकत्म जानकारी एिं विशिास के अनसुार ऊपर विख ेवििरण सतय हैं।

    ए्म. वसराज अनिरप्रकाशन प्रभाग

  • सपंादकीय

    वप्रय पाठकों! ह्मारे जीिन ्में खिेों का बहुत ्महति हरै। कयोंवक खिेों से ह्मारे व्यवकतति का संपणूया विकास होता हरै। इसी �ृंखिा ्में 04 से 15 अप्ररैि, 2018 तक ऑसेटविया ्में आयोवजत 21िें कॉ्मनिेलथ गेमस ्में ह्मारे दिे के प्रवतभािािी यिुा वखिावड़यों ने विवभन्न खेि सपधायाओ ं ्में 26 सिणया, 20 रजत एिं 20 कांसय पदक जीतकर ह्में गौरिां वित वकया हरै। िहीं 14 अप्ररैि, 2018 को ह्मने ह्मारे राष्ट के संविधान वन्मायाता डॉ. बाबा साहब भी्मराि अंबेडकर की जयंती ्मनाई। उन्होंने अपने सा्मावजक दियान के ्मंरिों — सितंरिता, स्मानता एिं भाईचारे को ह्मारे सम्मखु भारतीय संविधान के रूप ्में प्रसततु वकया। इसी कड़ी ्में भारतीय आधनुनक नशक्ा का यह अंक विक्षा द्ारा ्मानिीय ्मलूयों का संरक्षण एिं संिधयान करने िािे विवभन्न ्मागयादिशी विचारों, अनभुिों, ्मदु्ों तथा िोध पररणा्मों आवद को िेकर आपके स्मक्ष आया हरै।

    विक्षा ्मानि जीिन का आधार हरै। इसे रचनात्मक बनाने के विए रचनात्मक पाठ्यचयाया का होना ज़रूरी हरै। “रचनात्मक पाठ्यचयाया— स्मझ के साथ विकास” ना्मक िेख रचनात्मक पाठ्यचयाया के द्ारा नए ज्ान को रचने के विए विद्ाथशी को सक्ष्म बनाने के सकारात्मक पक्षों को उजागर करता हरै।

    रचनात्मकता िचीिी विक्षा व्यिसथा पर वनभयार हरै। अतः ह्में ह्मारी व्यहू रचनाओ,ं विक्षण विवधयों

    आवद ्में पररितयान करना होगा। तभी विद्ाथशी अपने पिूया ज्ान एिं अनभुिों के आधार पर निीन ज्ान का सजृन कर सीख सकें गे। इन्हीं ्मागयादिशी विचारों एिं अनभुिों को “वनव्मयातिाद और सीखना” ना्मक िेख तथा “एक अनठूा विज्ान खडं— विज्ान विक्षण को रचनात्मक बनाने का एक प्रयास” ना्मक िोध परि ्में स्मािेवित वकया गया हरै।

    विद्ावथयायों का सिाांगीण विकास करने के विए उनकी पाठ्यचयाया ्में विवभन्न प्रकार की वििय-िसत ुका स्मािेि वकया जाता हरै, वजस्में प्र्मखु हरै —गवणत वििय। कुछ विद्ावथयायों को इस वििय की वििय-िसत ु जवटि िगती हरै। उन्में इस जवटिता को दरू कर �वच उतपन्न करने के विए गवतविवध आधाररत विक्षण-अवधग्म प्रवरिया पर ज़ोर वदया जाता हरै। “खेि-खेि ्में गवणत वि क्ष्ाणा” ना्मक िेख गवणत विक्षण ि खेिों ्में स्मानता एिं खेिों के ्माधय्म से ज्ान और तकया को विकवसत करने के विए सरैदांवतक दृवष्टकोण प्रसततु करता हरै।

    विक्षा जहाँ ्मानि का सा्मावजक, सांसकृवतक एिं आवथयाक रूप से उतथान करती हरै, िहीं वकसी भी राष्ट के वन्मायाण ्में भी अह्म भवू्मका वनभाती हरै। दिे के विद्ाियों ्में प्रारंवभक सतर पर विद्ाथशी की ना्मांकन दर ्में िवृद हुई हरै। िेवकन जरैसे-जरैसे कक्षा का सतर बढ़ रहा हरै, उसी के साथ-साथ उनके द्ारा विद्ािय छोड़ने की िवृद दर भी बढ़ रही हरै। सरकारों

  • 4 भारतीय आधिुनक िशक्ा – अप्रैल 2018

    द्ारा अथक प्रयासों से बचचों को विद्ािय ्में जाने का अिसर तो व्मि रहा हरै, िेवकन विद्ाियी विक्षा परूी करना अभी भी ्मवुशकि हरै। यह कहीं-न-कहीं ह्मारी नीवतयों या सा्मावजक व्यिसथा ्में रिवुटयाँ हैं जो इन बचचों को विक्षा परूी करने ्में बाधा बनती हैं। िोध परि, “चडंीगढ़ के िहरी गरीब बचचों द्ारा विद्ािय छोड़ने के कारणों का अधययन” ्में बचचों को विद्ािय छोड़ने के विए ्मजबरू करने िािे कारणों पर प्रकाि डािा गया हरै।

    “विद्ाियी विक्षा द्ारा जीिन कौििों का विकास” ना्मक िेख ्में िेखक ने जीिन कौििों के विवभन्न प्रकारों का उलिेख करते हुए विक्षक द्ारा आयोवजत की जाने िािी िरैक्षवणक गवतविवधयों के ्माधय्म से विकवसत वकए जाने िािे जीिन कौििों पर प्रकाि डािा हरै।

    इन जीिन कौििों को सीखने की ि�ुआत बचच े की बालयािसथा से ही प्रारंभ हो जाती हरै। जरैसे-जरैसे िह अपनी भािा (्मातभृािा) को सीखता हरै, उससे उसे जीिन कौििों को और पररष्कृत करने का ्मौका व्मिता हरै। ऐसे ्में विक्षा का उत्तरदावयति बनता हरै वक िह बचच ेकी भािा का विकास कर उसे योगय नागररक बनाए। भारत एक बहुभाविक सा्मावजक दिे हरै। इसविए ह्मिेा यह वचतंन बना रहता हरै वक ह्मारी विक्षा नीवत और पाठ्यचयाया ्में इस तथय को वकस तरह स्मावहत वकया जाए वक ह्मारे बहुभाविक स्माज की विवभन्न भािाओ ं के ्मधय एक सा्मजंसय बना रह।े “बहुभाविकता — गाँधीजी की भािा नीवत और भािा वचतंन” िेख ्में ह्मारी भािा नीवत को गाँधीजी

    के भािा वचतंन के प्रकाि ्में दखेने का प्रयास वकया गया हरै।

    ह्म सभी भिी प्रकार जानते हैं वक सीखने की प्रवरिया से नए ज्ान का सजृन होता हरै। वजस्में िरैज्ावनक ज्ान एिं तकनीकी सबसे आगे हरै। वजसने िरैवशिक गाँि (Global Village) की अिधारणा को जन््म वदया। आज ह्म िरैवशिक ्मानिीय ्मलूयों, जरैसे— सा्मावजक, आवथयाक, राजनरैवतक, सांसकृवतक एिं िोकतांवरिक ्मलूयों पर वचंतन एिं विचार-वि्मिया करते हैं। वजसे विक्षा एिं वििेिकर विक्षक विक्षा को अद्तन कर पूरा वकया जा सकता हरै। इन्हीं सभी ्मदु्ों एिं अनुभिों तथा प्रयासों को “अधयापक विक्षा एिं अधयापकों का वनरंतर पेिेिर विकास”, “विक्षकों ्में पेिेिर चेतना—एक ्महती ज़रूरत” तथा “विद्ािय वनरीक्षण, अनुभि एिं अनुस्मथयान” ना्मक िेखों ्में विसततृ रूप से स्मझाने का प्रयास वकया गया हरै।

    आप सभी की प्रवतवरियाओ ंकी ह्में सदरैि प्रतीक्षा रहती हरै। आप ह्में विखें वक यह अकं आपको करै सा िगा। साथ ही, आिा करते हैं वक आप ह्में अपने ्मौविक तथा प्रभािी िेख, िोध परि, आिोचनात्मक स्मीक्षाए,ँ श्रषे्ठ अभयास (Best Practices), पसुतक स्मीक्षाए,ँ निाचार एि ं प्रयोग, क्षरेि अनभुि (Field Experiences) आवद प्रकािन हते ु ई-्मिे [email protected] पर या ह्मारे पते प्रभागाधयक्ष (पवरिका, प्रकोष्ठ) प्रकािन प्रभाग, राष्टीय िरैवक्षक अनसुधंान और प्रविक्षण पररिद,् श्री अरविंद ्मागया, नयी वदलिी-110016 पर भजेेंग।े

    अकादनिक संपादकीय सनिनत

  • रचनात्मक पाठ्यचयायास्मझ के साथ विकास

    भपूेन्द्र सिंह*पतंजसि सिश्र**

    आज वैश्ववक परिप्रेक्ष्य औि सामाजीकिण की प्श्रिष्या करे कें द्र में श्वद्ार्थी ष्या सीखनरे वालरे को िखकि श्िक्ा करे श्वश्िनन आष्याम तष्य श्कए जानरे की आववष्यकता ह।ै इटली करे प्श्सद्ध श्ित्रकाि,अश्िषं्यता औि वैज्ाश्नक श्लष्योनार्डो दा श्वनसी का ष्यह मत र्ा श्क उन श्विािकों करे उपदरेिों को अनदरेखा किना िाश्हए, श्जनकरे तक्क , अनिुवों द्ािा सतष्याश्पत न हों (एर्लि-पेंश्रिस औि एनर्ोनी, 2017)। अनिुवजश्नत ज्ान, तक्क किनरे की गणुवत्ा में तो वशृ्द्ध किता ही ह,ै सार् ही समझ करे सार् श्वकास में िी ष्योगदान दरेता ह।ै ब्रूनि (1960) नरे अपनरे एक महतवपरूण्क लरेख ‘द प्ोसरेस ऑफ़ एजकुरे िन’ में ििनातमकता करे बािरे में श्लखा ह ै श्क श्वद्ार्थी, अतीत औि वत्कमान की जानकािी करे आधाि पि अपनरे ज्ान का सवषं्य श्नमा्कण किता ह।ै इसीश्लए पाठ्ष्यिष्या्क का श्नमा्कण ऐसी दशु्नष्या को धष्यान में िखकि श्कष्या जाना िाश्हए जहाँ सामाश्जक, सांसकृश्तक औि िाजनैश्तक परिश्सर्श्तष्याँ लगाताि आस-पास करे परिवरेि, श्वद्ालष्यों औि श्वद्ाश्र््कष्यों करे लक्ष्यों में परिवत्कन किती िहती हैं (ब्रूनि, 1977)। ष्यह लरेख िी ििनातमक पाठ्ष्यिष्या्क करे द्ािा नए ज्ान को ििनरे करे श्लए श्वद्ार्थी को सक्म बनानरे करे सकािातमक पक्ों को उजागि किता ह।ै

    *िोधार्थी, सिक्षा सिद्षापीठ, िर्धिषान िहषािीर खिुषा सिश्िसिद्षािय, कोटषा, रषाजस्षान – 324010**सहाष्यक आिाष्य्क, सिक्षा सिद्षापीठ, िर्धिषान िहषािीर खिुषा सिश्िसिद्षािय, कोटषा, रषाजस्षान – 324010

    रचनषातिकतषािषाद (Constructivism), वयस्त कैिे िीखतषा ह?ै के बषारे िें एक ऐिषा सिदषंात और दि्धन ह ै(सबरने और िेलिर, 2012) जो इि ित पर आरषाररत ह ैसक ज्षान ऐिी िसत ुनहीं ह ैजो की एक सिक्क के द्षारषा िषारषारणतः कक्षा-कक् िें प्रदषान की जषा िके। प्रसिद सिक्क और दषाि्धसनक, िकुरषात कषा क्न ह ैसक िैं सकिी को कुछ भी नहीं सिखषा िकतषा, िैं केिि उन्हें सिचषार द ेिकतषा हू ँ(म्ोज, 2009)। यह इि बषात की पषुटी करतषा ह ैसक रचनषातिक असरगि

    के दौरषान सिद्षा्थी यषा िीखने िषािषा नए ज्षान को अपने पहिे िे िीख े हुए ज्षान के िषा् जोड़कर िीखतषा ह।ै रचनषातिकतषा के पक् िें यह पंस्त, ‘घोड़े को पषानी के पषाि तो िे जषायषा जषा िकतषा ह,ै िेसकन उिे पषानी पीने के सिए िजबरू नहीं सकयषा जषा िकतषा’, गोविोन के इि तक्ध िे सक ‘आप सकिी को ज़बरदसती नहीं सिखषा िकते और न ही िीखने को िजबरू कर िकते हैं, आप केिि िीखने कषा िषाहौि तैयषार करके द ेिकते हैं (िषाइलि और बनु्गरे, 2017)’ िे

  • 6 भारतीय आधिुनक िशक्ा – अप्रैल 2018

    परूी तरह िंतषुट होती सदखषाई दतेी ह।ै रचनषातिकतषा, ििझ के िषा् अतंर््धस षट जषाग्रत करने के सिए सियं की आतंररक िस्तयों ि ेपहचषान करषाने कषा सिसिषट िषाधयि ह।ै इ्कीििीं िदी के ििहूर िषाद्यंत्र िषादक एिं िगंीतकषार पषाबिो केिलि कहते हैं सक एक बचच ेको पतषा होनषा चषासहए सक िह सियं एक चितकषार ह,ै ्योंसक दसुनयषा के आरंभ ि े अतं तक उिके जिैषा कोई दिूरषा बचचषा नहीं होगषा (इसंपाइरिंग कोट्स ऑन िाइलर् लश्निंग एरं् श् र्वरेलपमेंट, 2007)। वयस्तगत सिसभन्नतषाए ँ (Individual differences) हििेषा िे सिद्िषान रही हैं। पिेटो (2000) ने अपने प्रसिद ग्रं् द रिपश््लक िें सिखषा सक कोई भी दो वयस्त परूी तरह ििषान जन्ि नहीं िेते, प्रषाकृसतक सनसरयों (Natural endowments) िे प्रतयेक वयस्त सभन्न होतषा ह।ै अतः प्रतयेक के िीखने कषा तरीकषा और िीखने की गसत भी सभन्न एिं असद्तीय होती ह।ै तो प्रश्न यह उठतषा ह ै सक सिखषाने के सिए अ्िषा ज्षान कषा आदषान-प्रदषान करने के सिए अधयषापन की योजनषा अ्िषा पषाठ्यचयषा्ध कैिी होनी चषासहए?

    रचनषातिकतषािषाद के अनिुषार, (1) सिद्षा्थी अ ््ध कषा सनिषा्धण करने िषािषा और ज्षान कषा िजृक ह;ै (2) एक िसरिय एिं िषानसिक सिकषाि की प्रसरियषा के तहत सिद्षा्थी द्षारषा ज्षान की रचनषा की जषाती ह;ै और (3) नए-नए अनभुिों के द्षारषा प्रषापत ज्षान स्षायी होतषा ह ैऔर इिी पिू्ध ज्षान के कषारण िझू अ्िषा अतंर््धसषट उतपन्न होती ह।ै ऐिे िें सिद्षास ््धयों की ििझ को ििसेकत कर, रचनषातिक रूप ि े उनकी ििझ की िीिषाए ँबढ़षाते हुए इि बषात के प्रसत िचते भी करनषा होगषा सक ितभदे यषा अतंर सकि प्रकषार वय्त सकए जषा

    िकते हैं (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा–2005)। इिके सिए—

    • सिद्षास ््धयों को सितंत्र सिचषारक होनषा चषासहए; • िीखने िषािे िे यह उमिीद की जषाती ह ैसक िह

    जषानने के िषा्-िषा् ििझ;े • सिद्षा्थी ििझ के िषा् प्रश्न पछेू; • सिद्षा्थी िसरिय िदसय के रूप िें दि (Team)

    के िषा् कषाय्ध करे; और • सिद्षा्थी वयिहषार िें सपषटतषा के िषा् पररित्धन करे।

    रचनात्मकतािादी पाठ्यचयाया—आिशयकताएँजब तक िोग एक-दिूरे ि े प्रश्न पछू रह े ्े, हिषारे पषाि रचनषातिक कक्षाए ँ ्ीं। रचनषातिकतषा िीखने कषा अधययन इि बषारे िें ह ै सक हि ििसत पररिेि, िषातषािरण और उिके अ ््ध को ऐिे ििझते हैं सक जिैषा िह िषासति िें ह ै(हन्टर, पीयरिन और गइुटेररेज़, 2015)। अतः अनभुि, तथयों की सिश्ििनीयतषा के िषाक्य के रूप िें होनषा चषासहए। िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005 कषा िझुषाि ह ै सक परसपर सिश्िषाि कषा िषातषािरण कक्षा को बचचों के सिए एक ऐिषा िरुसक्त स्षान बनषा दगेषा, जहषँा ि े अनभुि बषँाट िकें , जहषँा सििषादों को सिीकषार कर उन पर रचनषातिक प्रश्न उठषाए जषा िकें और जहषँा सििषादों के हि परसपर िहिसत िे सनकषािे जषा िकें , चषाह े ये हि सकतने ही अस्षायी ्यों न हों। सििषेकर िड़सकयों ि िसंचत िषािषासजक िग्ध ि े आए बचचों के सिए कक्षा ि सिद्षािय ऐिे स्षान पर होने चषासहए जहषँा िे सनण्धय िेने की प्रसरियषा पर चचषा्ध कर िकें , अपने सनण्धय के आरषार पर प्रश्न उठषा िकें त्षा िोच-ििझ कर सिकलप चनु िकें (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005)।

  • 7रचनात्मक पाठ्यचयाया — समझ के साथ विकास

    ररचर्ध ई. िौरेर (1996) ने अपनी पसुतक श्र्जाइश्नंग अॉलटिनरेश्टव असरेसमेंट्स फ़ॉि इटंिश्र्श्सश््लनिी करिकुलम इन श्मश्र्ल एरं् सरेकंर्िी सकरू लस िें रचनषातिकतषािषादी पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण के सिए चषार प्रिखु आिश्यकतषाओ ंपर धयषान कें सद्रत सकयषा ह ै—

    • कौििों के िषाधयि िे अ ््ध सनिषा्धण करने पर ज़ोर दनेषा;

    • बषािक के ज्षान प्रषापत करने की गहनतषा को धयषान िें रखनषा;

    • बषािक की ििझ के अनरुूप पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण करनषा और उि पषाठ्यचयषा्ध कषा िंबंर कक्षा िे बषाहर की दसुनयषा िे जोड़नषा; त्षा

    • िषासतसिक िषातषा्धिषाप और चचषा्ध को िषासिि करते हुए पषाठ्यचयषा्ध कषा सनिषा्धण करनषा। सिसभन्न पररसस्सतयों िें की गई सिसभन्न

    प्रसतसरियषाओ ं के फिसिरूप सकिी कषाय्ध को सियं करने यषा कषाय्ध करने िें िहषायतषा िे प्रषापत अनभुि, उि अनभुि के पररणषािों को िषाझषा करने, कषाय्ध करने िें प्रय्ुत प्रसरियषा कषा सिश्िेषण करने, प्रषापत

    ििषान पररसस्सतयों िें पररणषािों को िषाग ूकरनषा

    कषाय्ध को करने िे प्रषापत अनभुि

    उतपन्न पररणषािों को िषाझषा करनषासनषकषषों कषा िषािषान्यीकरण

    प्रय्ुत प्रसरि यषा कषा सिश्िेषण करनषा

    प्रसतसरि यषाअनपु्रयोग

    सरि यषा

    सनषकषषों कषा िषािषान्यीकरण कर अन्य पररसस्सतयों िें िषाग ूकरने िे प्रषापत होने िषािषा अनभुि ही स्षायी असरगि होतषा ह।ै अतः प्रतयेक सरियषा के सिए की गई प्रसतसरियषा और बषार-बषार अनपु्रयोग, अनिरत चिने िषािी प्रसरियषा के ऐिे िहतिपणू्ध किपजुरे़ हैं जो नए ज्षान की उतपसति के सिए उतिरदषायी हैं।

    नए ज्ान का अविग्मरेिन (2015) के अनिुषार, जसटि सिचषारों को िरितषा िे ििझने के सिए िंप्रतयय सचत्र (Concept map) असरक उपयोगी हैं। इिीसिए िीखने िषािे के िंज्षानषातिक बोझ (Cognitive load) को कि करने के िषा् ही नए ज्षान कषा असरगि करने के सिए िज़बतू उपकरणों य्षा सनदरेसित खोज प्रश्नों (Guided discovery questions), िहकिथी सििरण (Peer explanation), सजगिषा तकनीक (Jigsaw technique — कक्षा-कक् की गसतसिसरयों की ऐिी तकनीक सजििें दी गई ििसयषा सबनषा िहयोग के पणू्ध नहीं की जषा िकती),

    वचत्र 1 — अषानभुसिक असरगि प्रसरियषा

  • 8 भारतीय आधिुनक िशक्ा – अप्रैल 2018

    सिचषार-िं् न (Brain storming) और सिचषार उतिजेक कषायषों (Thought provoking tasks) की िहषायतषा िी जषाए। िबि ेिही तरीकषा तो यह होगषा सक ज्षान के पसुषट करण (Cofirmation) ि औसचतय (Rationale) को स्षासपत करने की प्रसरियषा िें सजन अिरषारणषाओ ंि अ्षों कषा उपयोग सकयषा जषातषा ह,ै उनके आरषार पर भी ज्षान कषा िगथीकरण सकयषा जषाए (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005)। कोब्ध (2009) ने नए प्रकषार कषा ज्षान िीखने अ्िषा नए अनभुिों को िीखने के तीन तरीके िझुषाए हैं —

    • पिू्ध की योजनषा िें पररित्धन सकए सबनषा नए ज्षान यषा अनभुि को िीखनषा;

    • योजनषा िें पररित्धन करके नए ज्षान यषा अनभुि को िीखनषा; त्षा

    • हर बषार नए ज्षान यषा अनभुि को िीखने के सिए नयी योजनषा कषा सनिषा्धण करनषा।नए ज्षान के असरगि और पिू्ध ज्षान के उपयोग

    के सिए िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005 िें कषाि के िंदभ्ध िें आरंसभक सतर िे िरुू करते हुए कषाि को असरगि िे जोड़ने के सिए कुछ बसुनयषादी कदि िझुषाए गए हैं। उनके पीछे आरषार यह ह ै सक

    योजनषा सनिषा्धण

    योजनषा कषा परीक्ण

    अपेसक्त पररणषाि

    पनु: नयी योजनषा कषा सनिषा्धण यषा ििषायोजन

    यसद प्रषापत हो जषातषा हैप्रषापत

    नहीं होतषा

    ज्षान को आतििषात्करनषा

    वच त्र 2 — रचनषातिक असरगि की प्रसरियषा

    ज्षान कषाि को अनभुि िें रूपषंातररत कर दतेषा ह ैऔर िहयोग, िजृनषातिकतषा और आतिसनभ्धरतषा जैिे िलूयों की उतपसति करतषा ह।ै यह ज्षान और रचनषातिकतषा के नए रूपों की प्रेरणषा भी दतेषा ह।ै

    रचनात्मकतािादी पाठ्यचयाया के प्र्ुमख तति रचनषातिकतषािषादी पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण के सिए गैगनों और कोलिे (2001) ने रचनषातिकतषािषादी असरगि प्रषाकलप (Constructivist learning design) के सिए छह ततिों को प्रिखुतषा दी ह ै—1. व्थवत फे््म — यह िीखने के प्रकरणों

    (Learning episodes) के िक्य, कषाय्ध और प्रकषार को सनरषा्धररत करतषा ह।ै

    2. िगया विभाजन — इििें िषािषासजक िरंचनषाए ँऔर ििहू अतंसरि्ध यषाए ँ िसमिसित होती हैं जो िीखने िषािे यषा सिद्षा्थी के िषासिि होने (Involvement) को सनरषा्धररत करती हैं।

    3. सयंोजक — यह रचनषािषादी पषाठ्यचयषा्ध कषा हृदय होतषा ह ैत्षा यह पिू्ध ज्षान को निीन ज्षान िे जोड़ने कषा िषाधयि होतषा ह।ै

    4. प्रशन — ये सिद्षास ््धयों के सिचषारों को उतिषासहत करने, पे्रररत करने, िंगसठत करने और िषाझषा करने के िषाधयि होते हैं।

  • 9रचनात्मक पाठ्यचयाया — समझ के साथ विकास

    5. प्रदरयान — यह सिद्षा्थी के िीख ेहुए ज्षान के अनिुषार उिके सिक्कों, िषा्ी ििहू और अन्य सहतरषारकों के प्रसत िषािषासजक पररसस्सतयों िें की गई प्रसतसरियषा कषा िषाि्धजसनक रूप िे प्रदि्धन करने की अनिुसत प्रदषान करतषा ह।ै

    6. प्रवतवरियाए ँ— ये सिद्षा्थी और सिक्क को उनके वयस्त गत एिं िषािसूहक (Collective) असरगि के अििरों को सिश्िेषणषातिक रूप िे िोचने के अििर प्रदषान करती हैं।

    रचनात्मकतािादी पाठ्यचयाया के उपाग्म सिक्ण एक िहयोगी उपरिि (Collaborative undertaking) ह ैऔर िहकषाररतषा अ्िषा भषागीदषारी उिकषा िषाधयि यषा िषारन (Means) ह।ै अतः रचनषातिकतषािषादी सिक्ण की योजनषा बनषाने अ्िषा रचनषातिकतषािषादी पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण करने के सिए कुछ प्रिखु उपषागि, पषाठ्यचयषा्ध की प्रभषाििीितषा के सिए आिश्यक हैं। रचनषातिकतषािषादी पषाठ्यचयषा्ध के सनिषा्धण के सिए सनमन उपषागि आरषार के रूप िें कषाय्ध करते हैं —

    बाल-कें द्रित उपागम (Child centered approach)

    िषाइगोतिकी कषा ित ह ै सक प्र्ितः, िीखने के सिए सरियषातिक रूप िे जड़ुने (Engage) की आिश्यकतषा होती ह,ै दिूरषा, असरगि तब होतषा ह,ै जब बषािक अतंसरि्ध यषा करतषा ह ै त्षा अपने चषारों ओर खोजबीन करने के सिए पे्रररत होतषा ह ै और तीिरषा, िषा्-िषा् सकए गए िषािषासजक अतंसरि्ध यषा और अन्िेषण बषािक के ज्षान के स्षायीकरण (Fixation) के सिए सज़मिदेषार हैं (सिन, 2015)।

    इिकषा सपषटीकरण सपयषाजे़ के इि ित िें सछपषा ह ैसक बचच ेिंप्रतययों और सिचषारों को िंगसठत करने और उन्हें एक रूपरेखषा (Schema) िें िंजोकर िीखते हैं। बचच,े उि ज्षान के सनयंत्रण िें बने रहते हैं जो ज्षान उन्हें सदयषा जषा रहषा ह ैऔर उिी के िहषारे िे िषािषासजक सरियषाकिषापों और अन्िेषण के आरषार पर नए ज्षान की रचनषा करते हैं (बयषानी, 2017)। अतः बषािक को पिू्ध ज्षान के आरषार पर निीन सिचषारों की उतपसति करने के योगय बनषाने हते ु रचनषािषादी पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण के सिए, इििें बषाि-कें सद्रत उपषागि के िहति को ििझते हुए, िषासिि सकए जषाने की आिश्यकतषा ह।ै

    द्िषय-कें द्रि त उपागम सिषय-कें सद्रत उपषागि को ज्षान आरषाररत उपषागि (Knowledge based approach) भी कहषा जषातषा ह।ै सिषय-िसत ु को तीन अिग-अिग प्रकषारों िें िगथीकृत सकयषा जषातषा ह—ै1. सा्मान्य विषय-ि्तु (Common content)—

    िह सिषय-िसत ुजो सक िभी सिद्षास् ्धयों को पढ़नी चषासहए, जिै—े (i) प्रषा्सिक सिद्षाियों िें यह पढ़नषा, सिखनषा और गणनषा करनषा (अकंगसणत) (Reading, Writing and Arithmetic अ्षा्धत ्3Rs) होते हैं, (ii) िषाधयसिक सिद्षाियों िें गसणत, सिज्षान, िषािषासजक सिज्षान/इसतहषाि और अगं्रेज़ी/भषाषषा किषा आसद।

    2. विरेष विषय-ि्तु (Specific content) — िह सिषय-िसत ु सजििे सिसिषट वयििषायों के सिए सिद्षास ््धयों को तैयषार करते हैं। इििें वयषाििषासयक और तकनीकी सिक्षा िंबंरी पषाठ्यचयषा्ध िषासिि होती ह।ै

  • 10 भारतीय आधिुनक िशक्ा – अप्रैल 2018

    3. ऐव् छिक विषय-ि्तु (Elective content) — यह िैकसलपक चयन की सिषय-िसत ुहोती ह।ै इनके िषाधयि िे बचच ेअपने-अपने ज्षान और कौिि िें सििषेज्तषा प्रषापत करने की कोसिि कर िकते हैं, जैिे— फोटोग्रषाफी यषा िैिषासनकी (Aeronautics) आसद।

    समसया-कें द्रित उपागम ििसयषा आरषाररत असरगि ऐिी सिक्ण पदसत ह ैसजििें जसटि िषासतसिक दसुनयषा की ििसयषाओ ंकषा प्रयोग सिद्षास ््धयों को अिरषारणषाओ ंऔर सिदषंातों कषा ज्षान करषाने के सिए सकयषा जषातषा ह।ै यह सिद्षा्थी िें ििषािोचनषातिक सचतंन कौिि, ििसयषा ििषारषान िंबंरी योगयतषा और िंपे्रषण कौिि के सिकषाि को बढ़षािषा द ेिकतषा ह।ै यह ििहू िें कषाय्ध करने, प्रतयक् एिं अप्रतयक् िलूयषंाकन और जीिन भर िीखने के सिए अििर प्रदषान कर िकतषा ह ै(रच और अन्य, 2001)। िषाइगोतिकी (1978) के अनिुषार सिद्षा्थी के ििसयषा ििषारषान िंबंरी कौििों को तीन िगषों िें बषँाटषा जषा िकतषा ह ै—

    • ऐिे कौिि सजन्हें सिद्षा्थी कषायषा्धसन्ित नहीं कर िकतषा, जैिे— प्रतयेक सिद्षा्थी अपने िषास्यों कषा हर प्रकषार ि े िलूयषंाकन करने िें िक्ि तो होतषा ह,ै िेसकन उिकषा िलूयषंाकन प्रषािषासणक नहीं िषानषा जषा िकतषा (एक सिक्क द्षारषा सकयषा गयषा िलूयषंाकन ही प्रषािषासणक िषानषा जषातषा ह)ै

    • ऐिे कौिि सजन्हें सिद्षा्थी कषायषा्धसन्ित करने के सिए योगय हो िकतषा ह,ै जिै—े नेततृि, सनण्धय सनिषा्धण।

    • ऐिे कौिि सजनकषा कषायषा्धन्ियन सिद्षा्थी िहषायतषा सििने पर कर िकतषा ह,ै जैिे—

    िंगणक कषा िंचषािन, िूचनषा िंपे्रषण तकनीकी कषा उपयोग आसद।

    मानि सबंंध-कें द्रित उपागम िषानि िंबंर-के ंसद्रत उपषागि सिक्षा के सनमन िंदभषों के बषारे िें ज्षान प्रषापत करने को िसमिसित करतषा ह—ै1. वरक्ा के उदे्शय— िसैक्क सरियषाओ ं के

    तीन प्रकषार के िषािषान्य उद्शे्य हैं — (i) िषािषासजक उद्शे्य; (ii) अकषादसिक उद्शे्य; (iii) वयस्तगत उद्शे्य ।

    2. रैवक्क प्रवरियाओ ं का चररत्र — प्रतयेक वयस्त के सिक्षा प्रषापत करने के पीछे सनसहत उद्शे्यों के आरषार पर िसैक्क प्रसरियषाओ ं कषा चररत्र सनरषा्धररत होतषा ह।ै

    3. सीखने की प्रकृवत — िीखने की प्रकृसत िषानि-कें सद्रत सिक्ण प्रसरियषा के अनिुषार सनरषा्धररत होनी चषासहए।

    4. विद्ाथथी की वयवततगत एिं रैवक्क ज़रूरतें— िसैिो के अनिुषार वयस्त की सनमन पषँाच आिश्यकतषाए ँप्रिखु हैं —(i) िषारीररक आिश्यकतषाए;ँ(ii) िरुक्षा िंबंरी आिश्यकतषाए;ँ(iii) पे्रि/सनेह और िबंदतषा िबंंरी आिश्यकतषाए;ँ(iv) आतििमिषान िंबंरी आिश्यकतषाए;ँ और(v) आति-ज्षान िंबंरी आिश्यकतषाए।ँ

    रचनात्मकतािादी पाठ्यचयाया के वनविताथया भषारत िें सिक्षा के जसटि पररर्श्य को दखेें तो तीन िखुय िदु् ेनज़र आते हैं— (i) सिक्षा आज भी हिषारे िंसिरषान िें सनसहत िितषा के उद्शे्य की प्रषासपत िे बहुत दरू ह;ै (ii) भषारत िें अचछी-िे-अचछी सिक्षा भी

  • 11रचनात्मक पाठ्यचयाया — समझ के साथ विकास

    दक्तषा तो सिकसित करती ह,ै िेसकन रचनषातिकतषा ि अन्िेषण को पे्रररत नहीं करती; और (iii) भषारत िें सिक्षा की असरकतर ििूभतू ििसयषाओ ं कषा आरषार ह,ै परीक्षा की बोसझि वयिस्षा (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005)। इिीसिए िौजदूषा सिक्षा की सस्सत िें सकिी भी तरह के गणुषातिक पररित्धन के सिए एक सनदि्धनषातिक बदिषाि, रटने को हतोतिषासहत करने, भषाषषा, भषाषषा के प्रषाकलप ि िखंयषातिक दक्तषा द्षारषा खोजबीन की प्रिसृति को िरु्ढ़ करने एिं सिद्षाियों द्षारषा पषाठ्य-िहगषािी सरियषाओ ं पर आसिषकषारिीितषा एिं रचनषातिकतषा के िषाधयि ि ेअसरक बि सदए जषाने की ज़रूरत ह,ै भि ेही ये तति बषाहर की परीक्षा वयिस्षा कषा भषाग न हों, (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005) िेसकन सनसश्चत ही पषाठ्यचयषा्ध योजनषा के सनसहतषा ््ध को तय करने िषािे आिश्यक अगं हैं। जोनषािने (1994) ने रचनषातिकतषािषादी पषाठ्यचयषा्ध के सनमन सनसहतषा ््ध िझुषाए हैं —

    • िषासतसिक ज्षान को प्रसतसनसरति प्रदषान करतषा ह।ै • िषासतसिक दसुनयषा और िषासतसिक पररिेि की

    प्रषाकृसतक जसटितषा कषा प्रसतसनसरति करतषा ह।ै • िषासतसिक ज्षान के सनिषा्धण पर कें सद्रत करतषा ह ैन

    सक आभषािी ज्षान के सनिषा्धण पर। • अितू्ध सिक्ण के बजषाय, कषाय्ध-योजनषाओ ंके िदंभ्ध

    के आरषार पर प्रषािषासणक प्रसतुतीकरण देतषा ह।ै • पिू्ध सनरषा्धररत अनदुिे अनरुिि (Instructional

    sequences) के बजषाय, कषाय्ध करने के सिए िषासतसिक पररिेि (Real world) एिं प्रकरण आरषाररत असरगि िषातषािरण (Case based learning environment) प्रदषान करतषा ह।ै

    • सच ंतनिीि अभयषाि (Reflective practice) को प्रोतिषाहन दतेषा ह।ै

    • िंदभ्ध और सिषय-िसतु पर आरषाररत ज्षान के सनिषा्धण िें िक्ि बनषाने िें िहषायक है।

    • िषािषासजक ििझौते के िषाधयि िे िहयोग के द्षारषा ज्षान के सनिषा्धण कषा िि ््धन करतषा ह।ै

    रचनात्मकतािादी पाठ्यचयाया के अनुप्रयोग सिद्षा थी अपने प्रषारंसभक िपं्रतययों को सि-सचतंन (Self-reflection) और अंतसरि्ध य (Interaction) के द्षारषा पनुप्धररभषासषत (Redefine), पनुग्ध-सठत (Reorganise), सिसततृ (Elaborate) और पररिसत्धत (Change) करते हैं (बषाईबी, 1997)। अगर आिश्यकतषाओ ं की पसूत्ध अ्िषा अ्थोपषाज्धन (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005) के कषाय्ध को सि द्षाियी पषाठ्यचयषा्ध कषा असभन्न सहसिषा बनषा सदयषा जषाए तो कई िषाभ असज्धत सकए जषा िकते हैं। अकषादसिक िषातषािरण िें नयी प्रकषार की िझू िे रचनषातिकतषा और कषाय्ध की प्रकृसत के ही बदि जषाने की िभंषािनषा होती ह ै (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा— 2005)। रचनषातिकतषािषादी पषाठ्यचयषा्ध के अनपु्रयोग को ‘पाँि ई (5E) िपं्रतयय’ के िषाधयि िे ििझषा जषा िकतषा ह।ै1. संलगनता (Engage) — अतीत और ित्धिषान

    के अनुभिों के तषाििेि सबठषाने को िंिगनतषा के अंतग्धत रखषा जषातषा ह।ै इििें गसतसिसरयों कषा खषाकषा बनषाकर सिद्षास ््धयों के सिचषारों पर िौजूदषा गसतसिसरयों के िंदभ्ध िें धयषान कें सद्रत सकयषा जषातषा ह ैऔर सिद्षास ््धयों को िीखने िषािे कौिि, प्रसरियषा और अिरषारणषाओ ंके िषा्

  • 12 भारतीय आधिुनक िशक्ा – अप्रैल 2018

    िषानसिक रूप िे िंिगन करने के प्रयषाि सकए जषाते हैं। प्रतयेक पषाठ्य-योजनषा िें एक असनिषाय्ध प्रश्न होतषा ह ैजो उनकी जषँाच कषा आरषार होतषा ह।ै आितौर पर िंिगनतषा (Engage) िें कुछ प्रिखु प्रश्न होते हैं सजििे अन्िेषण को सदिषा सिि िके।

    2. खोजना (Explore) — इििें सिद्षा्थी सिषय कषा गहन अन्िेषण/खोज करते हैं। िबिे जयषादषा ज़रूरी यह ह ै सक बचचों को अपने तरीके िे चीज़षंाे को ििझने के अििर सििते हैं और केिि उन्हें सदिषा-सनदरेि देने की ज़रूरत होती ह।ै अधयषापक ज़रूरी ििषाि पूछकर, उनके िंिषाद को िुनकर यह िुनसश्चत करतषा ह ैसक बचचों िें कुछ नयषा खोज करने की िसृति सिकसित हो रही ह।ै

    3. वयाखया (Explain) — इििें सिद्षास ््धयों को उन अिरषारणषाओ ंकी वयषाखयषा करने िें िदद सििती ह,ै सजन्हें िे िीख रह ेहोते हैं यषा िीखनषा चषाहते हैं। बचचे अपनी ििझ को िबदों िें रूपषंातररत यषा वय्त करते हैं और अपने कौिि कषा पररचय देते हैं तो उन्हें औपचषाररक िबदषाििी, पररभषाषषा, अिरषारणषा, प्रसरियषा, कौिि और सिसभन्न वयिहषारों िे पररसचत होने के अििर सििते हैं।

    4. वि्तार (Elaborate) — सिसतषार की प्रसरियषा िें बचचों िे यह अपेक्षा की जषाती ह ैसक िे अपने अभयषाि पर िगषातषार धयषान कें सद्रत करें और निीन िचूनषाओ ं कषा उपयोग एिं सिश्िेषण कर अपने सनषकषषों की प्रसतसुत अन्य िोगों

    (अपने सिक्क, िषा्ी-ििहू, सनदरेिक आसद) के ििक् करें। अपने कषाय्ध के िलूयषंाकन, प्रसतुतीकरण एिं िुरषार करते हुए नयी सिसरयों की तरफ अग्रिर होने के सिए यह िबिे िही चरण होतषा ह।ै

    5. ्ूमलयांकन (Evaluate) — सिसतषार की प्रसरियषा िें प्रसततुीकरण के दौरषान सिद्षा्थी के सिक्क, िषा्ी-ििहू, सनदरेिक आसद द्षारषा सकयषा गयषा िलूयषंाकन, उिे अपने कषाय्ध को जषँाचने कषा अििर प्रदषान करतषा ह।ै अतः सिद्षा्थी को िलूयषंाकन के दौरषान सिसभन्न पनुब्धिन, परुसकषार अ्िषा फीरबैक आसद के द्षारषा खोज करने के सिए पे्रररत सकयषा जषाए तषासक िे अपने िलूयषंाकन के तरीके एिं उपकरण सियं सिकसित कर िके।

    रचनात्मक पाठ्यचयाया वन्मायाण ्में स्म्याएँिाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा— 2005 िें पषाठ्यचयषा्ध को रचनषातिक बनषाने िे जुड़ी पषँाच प्रिखु ििसयषाओ ंको रेखषंासकत सकयषा गयषा ह ै—

    • ज्षान के जो सिरूप पषाठ्यपुसतकों के अंतग्धत नहीं आते यषा सजनकषा िलूयषंाकन अंकों के आरषार पर नहीं हो िकतषा, उनको एक तरफ करके ‘असतरर्त’ करषार दे सदयषा जषातषा ह,ै जबसक उन्हें पषाठ्यचयषा्ध कषा ििेसकत अंग होनषा चषासहए। इनको जैिे-तैिे सनपटषा सदयषा जषातषा ह ै और सबरिे ही सिक्क इन सिषयों के सिए सकूि िें तैयषारी करते यषा धयषान देते हैं। ज्षान के अन्य रूप, जैिे — सिलप और खेिकूद, जो कौिि, िौंदय्धबोर, चतुरषाई, रचनषातिकतषा, ििहू िें कषाि करने की क्ितषा

  • 13रचनात्मक पाठ्यचयाया — समझ के साथ विकास

    आसद की र्सषट िे बेहद ििदृ होते हैं, परे छूट जषाते हैं। कषािकषाज-िंबंरी ज्षान के िहतिपूण्ध क्ेत्र, उििे जुड़े वयषािहषाररक कौिि भी पूरी तरह िे उपेसक्त रह जषाते हैं और अभी भी ऐिे उपयु्त पषाठ्यचयषा्ध सिदषंात नहीं सनसि्धत सकए गए हैं जो इन क्ेत्रों िें बचचे के ज्षान, कौिि और �सच के सिकषाि को प्रोतिषासहत कर पषाएँ।

    • सिषयों कषा आपि िें कोई तषािििे नहीं होने िे बचचषा ज्षान को ििसेकत प्रषापत करने के बजषाए खरंों िें प्रषापत करतषा ह।ै इििे बषािक, ज्षान ग्रहण करने के बषाद सिकसित हुए सिसभन्न र्सषट कोणों को कोई एक सनसश्चत आरषार न सिि पषाने के कषारण, सिषयगत िचूनषा को ही ज्षान ििझ िेतषा ह।ै इि कषारण िे िह सिद्षाियी ज्षान को अपने सियं के अनभुिों िे जोड़ नहीं पषातषा और बषािक के सिषयगत ज्षान और अपने पररिेि के ज्षान के बीच एक िीिषा-रेखषा सखचं जषाती ह।ै

    • पहिे िे िौजदू ज्षान को जयषादषा तिजजो दी जषाती ह ै सजििे बचच े की सियं के द्षारषा ज्षान िसृजत करने एिं कुछ भी नयषा खोजने की क्ितषा नषट हो जषाती ह ै और िचूनषा को ही ज्षान िे जयषादषा िहति दकेर भषारी-भरकि पषाठ्यपसुतकों कषा सनिषा्धण कर सदयषा जषातषा ह।ै इििें यषंासत्रक रूप िे दोहरषाने और प्रश्नों के पहिे िे तय सकए हुए उतिर आने पर ज़ोर सदयषा जषातषा ह,ै न सक रचनषातिकतषा के िषा् ििझ बढ़षाने पर। ऐिे िें केिि ‘तथयों के बोझ’ के असतरर्त बचचषा कुछ और असरक हषासिि नहीं कर पषातषा।

    • आज एक िहतिपणू्ध आिश्यकतषा यह ह ैसक सिषय कषा असरगि और सिद्षािय की गसतसिसरयषँा, ििषाज के ििकषािीन िदु्ों को िंबोसरत करें। िेसकन होतषा इिके सबिकुि सिपरीत ह ैऔर िह यह सक सिद्षाियी पषाठ्यचयषा्ध ििषाज के िदु्ों को तो िषासिि करती ह,ै परंत ुएक तो उन िदु्ों को िषािों-िषाि बदिषा नहीं जषातषा ह,ै सजििे सिखषाने और िीखे हुए कषा िलूयषंाकन करने हते ु परंपरषागत सिसरयषँा ही जि की ति बनी रहती हैं और ततकषािीन िदु् ेपषाठ्यचयषा्ध िें िषासिि होते-होते सफर परुषाने हो जषाते हैं। इि सस्सत िें बषािक कषा ज्षान िहीं कषा िहीं रहतषा ह,ै िह यह जषान ही नहीं पषातषा की निषाचषार ्यषा ह?ै

    • एक ििसयषा ज्षान की िषािग्री और ज्षान प्रदषान करने के सिदषंातों के चयन िे िंबंसरत ह।ै सिकषाि के आयषािों को धयषान िें रखकर यह तो तय कर सियषा जषातषा ह ैसक ज्षान प्रदषान करने की िषािग्री कक्षा-सतर अनरुूप, तषासक्ध क रिि िें, बषािक की िीखने की गसत और बषािक के पररिेि िे िंबंसरत ह ैसक नहीं। परंत ुइन िबिें तषाििेि कैिे सबठषायषा जषाए, यह तय नहीं सकयषा जषातषा। उदषाहरणषा ््ध—िषाधयसिक सिद्षािय िें गसणत एिं भौसतकी की अिरषारणषाएँ, उन्हें एक-दिूरे िे नहीं जोड़षा जषातषा (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा— 2005)। इििे बषािक के सियं के अनभुिों को आज़िषाने कषा उसचत ररषाति न सिि पषाने के कषारण पषाठ्यचयषा्ध को रचनषातिक बनषाने के ििसत प्रयषाि सिफि हो जषाते हैं।

  • 14 भारतीय आधिुनक िशक्ा – अप्रैल 2018

    भाषा, सावितय और रचनात्मक पाठ्यचयायाबहुभषासषकतषा, जो बचचे की अससितषा (Sense of power) कषा सनिषा्धण करती ह ै और जो भषारत के भषाषषा-पररर्श्य कषा सिसिषट िक्ण भी ह,ै उिकषा िंिषारन के रूप िें उपयोग, कक्षा की कषाय्धनीसत कषा सहसिषा बनषाने त्षा उिे िक्य के रूप िें रखने कषा कषाय्ध रचनषातिक भषाषषा सिक्क कषा ह।ै चूँसक बचचों की असरकषासरक प्रिसृति सचत्रों के िषाधयि िे असभवयस्त करने की होती ह।ै यहषँा तक सक सभन्न प्रसतभषा िषािे बचचे, जो बोि नहीं पषाते, िे भी अपनी असभवयस्त के सिए उतने ही जसटि िैकसलपक िंकेतों और प्रतीकों कषा सिकषाि कर िेते हैं (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005)। यह बचचों के सियं के द्षारषा उपिबर िंिषारन कषा बेहतर इसतेिषाि तो ह ै ही, िषा्-ही-िषा् अपने अससतति को िंरसक्त करने की भसूिकषा कषा भी सनि्धहन ह।ै पुसतकों िे िीखने एिं सिखषाने के बजषाय करके िीखनषा एिं सिखषानषा िंिेगों, िंिेदनषाओ,ं असभिसृतियों आसद को असरक प्रभषासित करतषा ह।ै िैिे जॉन रीिी ने भी यही कहषा सक “ििसत िषासतसिक ज्षान, अनुभि के िषाधयि िे आतषा ह”ै (रीिी, 1938)।

    �सचकर िषासहतय भी बचचों की रचनषािीितषा को बढ़षा िकतषा ह।ै कोई कहषानी, कसितषा यषा गीत िुनकर बचचे भी सियं कुछ सिखने की सदिषा िें प्रितृि हो िकते हैं। उनको इिके सिए भी प्रोतिषासहत सकयषा जषानषा चषासहए सक िे अिग-अिग रचनषातिक असभवयस्त के िषाधयिों को आपि िें सििषाए ँ(िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005)।

    िषासहतय को �सचकर बनषाने के सिए सिसभन्न प्रकषार के प्रभषािी र्श्य-सिक्ण उपकरण (Visual teaching tools) हो िकते हैं, सजनिें फोटो, सचत्र, सचह््न, प्रतीक, सकेचेज़, िेखषा सचसत्रत आँकड़े और अिरषारणषा, न्िे आसद हो िकते हैं। उदषाहरण के तौर पर, हि असरकतर बषंार के नषाि को पढ़ने िे पहिे, उिके सचसत्रत आिेख (Visual graphic) अ्िषा िोगो (Logo) को देखकर बषंार को तुरंत पहचषान िेते हैं (कौयौमदसजयषान, 2012)।

    वयवततगत कौरल विकास और रचनात्मक पाठ्यचयाया

    वयस्तगत और िषािषासजक अपेक्षाओ ंके िद्ेनज़र अधययन िें आए बड़े बदिषािों के बषािजूद पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण के सिए प्रषािंसगक प्रिखु क्ेत्र बहुत िंबे ििय तक सस्र ही रह ेहैं। यह आिश्यक ह ैसक बदिते पररपे्रक्य और िैसश्िक िषँाग को धयषान िें रखकर पषाठ्यचयषा्ध सनिषा्धण के सिए उिके प्रतयेक क्ेत्र पर गहन पुनसि्धचषार सकयषा जषाए तषासक उभरती िषािषासजक ज़रूरतों को पूरषा सकयषा जषा िके। इि िंबंर िें िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005 िें किषाओ,ं सिषासथय एिं िषारीररक सिक्षा की भसूिकषा ि सस्सत पर सििेष धयषान देने, किषाओ ंको पषाठ्यचयषा्ध के क्ेत्र िें िषाकर ििषासहत करने हतेु अनुिंिषा की गई ह।ै इि रूपरेखषा िें आस ््धक, िषािषासजक ि वयस्तगत सिकषाि के सिए कषाि, िषंासत और सिषासथय एिं िषारीररक सिक्षा की आिश्यकतषा को बतषाते हुए, इनके िषाधयि िे बुसनयषादी आतिसनभ्धरतषा, िषंासत-आरषाररत िलूयों

  • 15रचनात्मक पाठ्यचयाया — समझ के साथ विकास

    ि सिषासथय की िंसकृसत िें बचचों के िषािषाजीकरण की प्रसरियषा को उजजिि बनषाने पर ज़ोर सदयषा गयषा ह।ै उदषाहरण के सिए, यह सदखषाई देनषा सबिकुि भी अिषािषान्य नहीं ह ै सक छोटे-छोटे बचचे फि्ध बुहषारने, बैठकें करने, घर बनषाने (सिट्ी यषा बजरी िें खेिते हुए, दीिषारों पर कोयिे यषा चनूषा पत्र िे), खषानषा बनषाने यषा घर-घर खेिने आसद कषा असभनय करें। ऐिषा करने िे उनके सियं के अनुभिों िें िषािषासजकतषा, िहयोग, वयिस्षा, िंगठन, ििहू, तंत्र सनिषा्धण, सनण्धय करने एिं सनण्धय पररिषाज्धन, नेततृि आसद कषा सिकषाि सितः होने िगतषा ह।ै कई सिक्षािषासत्रीय सिसरयों िें कषाि कषा उपयोग िैक्सणक उपकरण के रूप िें सकयषा जषातषा ह।ै उदषाहरण के सिए, िषंाटेिरी पदसत िें कषाि के कौिि और अिरषारणषाओ ंको कषाफी आरंभ िे पषाठ्यचयषा्ध िें जगह दी जषाती ह।ै िबज़ी कषाटनषा, कक्षा िषाफ करनषा, बषागबषानी और कपड़े िषाफ करनषा आसद सिक्ण-चरि कषा सहसिषा होते हैं। बचचों की आय ुि योगयतषा को धयषान िें रखकर तैयषार सकयषा गयषा उपयोगी कषाि उनके िषािषान्य सिकषाि िें तो योगदषान देतषा ही ह,ै िषा् ही उनके सिए िलूयों, बुसनयषादी िैज्षासनक अिरषारणषाओ,ं कौििों और रचनषातिक असभवयस्त के कषारक के रूप िें कषाि करतषा ह।ै बचचे कषाि के द्षारषा अपनी एक अससितषा पषाते हैं और सियं को उपयोगी और िहतिपूण्ध ििझते हैं, ्योंसक कषाि उनको अ ््धिषान बनषातषा ह ैऔर इिके िषाधयि िे िे ििषाज कषा सहसिषा बनते हैं और ज्षान के सनिषा्धण िें िक्ि हो पषाते हैं (िाष्ट्ीष्य पाठ्ष्यिष्या्क की रूपिरेखा—2005)।

    वनषकषयारचनषातिक पषाठ्यचयषा्ध की सिषय-िसत ु इि बषात पर ज़ोर दतेी ह ै सक कैिे एक बषािक अपने पिू्ध के अनभुिों िें नए अनभुिों को जोड़तषा ह।ै उिके बषाद उन अनभुिों के आरषार पर पहिे िे स्षासपत ितों, सिश्िषािों, प्रषाकलपनषाओ,ं सिदषंातों कषा िरुषार, पषुट और असिीकृत करतषा ह ै (सबरने और िेलिर, 2012) और अपने िषािषान्य बोर िें िसृद करतषा ह।ै आतििषातीकरण (Assimilation) की प्रसरियषा के पक् िें जीन सपयषाजे़ कहते हैं सक िीखनषा तो जन्ि के पहिे िे ही प्रषारंभ हो जषातषा ह।ै सपयषाजे़ के अनिुषार, यसद िषातषा के उदर (Abdomen) के पषाि ज़ोर िे धिसन उतपन्न की जषाए तो भ्णू की हृदय की रड़कन बढ़नषा, उिके िीखने की प्रसतसरियषा कषा िंकेत ह ै (फोसटर और िोरषान, 1985)। सपेलट (1948) ने तो यह िषासबत कर सदयषा सक 28 िपतषाह कषा भ्णू, िषासत्रीय अनबंुसरत (Classically conditioned) सकयषा जषा िकतषा ह।ै इििे अरसत ु और िॉक की बषािक के जन्ि ि े ही ‘कोरी परट्कषा’ (Blank slate, ‘Latin: Tabula Rasa’) (इनसाइकलोपीश्र्ष्या श्ब्टाश्नका, 2016) होने के िंप्रतयय को तो नषाकषारषा जषा िकतषा ह ै और जी


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